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सतना। एकेएस विश्वविद्यालय सतना के कृषि संकाय के विशेषज्ञों ने अतिसुंदर अलंकृत लाल पत्तागोभी का उत्पादन कृषि संरक्षित क्षेत्र पाॅलीहाउस में बड़े पैमाने पर किया है। अगर इसकी विशेषताओं की बात करें तो शरद ऋतु की सब्जियों में अन्य गोभी की तरह इसे भी दोमट या बलुई मिट्टी में उगाया जाता है। हरी खाद या कम्पोस्ट खाद इसके लिये वरदान है। मिट्टी का पीएच मान 6.0 से 7.5 होना चाहिये। वि.वि. के पाॅलीहाउस की ठंडी जलवायु एवं कम आर्दता में यह उत्तम परिणाम देती है। गोलाई में बढ़ने वाली लाल पत्तागोभी दो जुताई के बाद भुरभुरी मिट्टी में ज्यादा बढ़ती है। यह उन्नत किस्म की लाल पत्तागोभी कैल्सियम, लोहा, पोटैशियम, प्रोटीन, कैलरीज तथा खनिज लवणों से परिपूर्ण होती है। एकेएस वि.वि. में इसे ब्रोकली के साथ ही उगाया गया है। अक्टूबर-नवम्बर माह में इसे बोया गया और इसकी पंक्तियों में आम गोभी की तरह अंतर रखा जाता है और बीजों में उगने के लिये पर्याप्त दूरी रखी जाती है। इसमें सिंचाई 12 से 15 दिन के अंतराल में की जाती है। इसकी पूर्णतः वृद्धि के बाद नीचे से तेज चाकू या हंसिया से काटा जाता है। एकेएस वि.वि. के कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि इसमें पानी की प्रचुर मात्रा होती है। यह सलाद के रूप में सर्वश्रेष्ठ और सब्जियों में भी स्वादिष्ट होती है। एकेएस वि.वि. की लाल पत्तागोभी जैविक खाद से तैयार हो रही है। लाल पत्तागोभी के उत्पादन के बाद इसे बिक्री के लिये भी रखा गया है। इस तरह वि.वि. निरंतर नये अनुसंधान द्वारा जिले के कृषकों एवं आमजनों के लिये उपयोगी वेजिटेबल्स के उत्पादन के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियां प्राप्त कर रहा है। एकेएस वि.वि. के उत्पादन केन्द्र से यह आसानी से प्राप्त की जा रही है। वि.वि. के कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि वि.वि. में उत्पादित होने वाली लाल पत्तागोभी बहुत सारे गुणों से परिपूर्ण है, जिसे विश्वविद्यालय से प्राप्त किया जा सकता है। वि.वि. के कुलपति प्रो. पारितोष के. बनिक, चेयरमैन अनंत कुमार सोनी, प्रतिकुलपति डाॅ. हर्षवर्धन, डाॅ. आर.एस. त्रिपाठी, ओएसडी प्रो. आर.एन. त्रिपाठी के साथ वि.वि. के एग्रीकल्चर संकाय के डीन डाॅ. आर.एस. पाठक, डाॅ. एस.एस. तोमर ने पाॅलीहाउस परिक्षेत्र का भ्रमण किया और संरक्षित क्षेत्र मे कार्य कर रहे वैज्ञानिकों को बधाई दी। पाॅलीहाउस के अंतर्गत अन्य कई सब्जियां जैसे पीली पत्तागोभी भी उगाई जा रही हैं जो उच्चतम गुणवत्ता की जैविक खाद से तैयार हैं। एकेएस वि.वि. में इसकी पैदावार 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसे किचन गार्डनिंग की भी प्रक्रिया में तैयार किया जा सकता है। सब्जियों में बीमारी की रोकथाम के लिये एकेएस वि.वि. में ही तैयार हो रहे गौउत्पादों का उपयोग किया जाता है।