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कई देशों में विज्ञान की प्रगति के साथ उद्योग धन्धे तेजी से पनपने लगे। यूरोप में राजतन्त्र था। सभी देशों में राजा राज्य के प्रमुख होते थे। विज्ञान एवं उद्योगों के कारण प्रजातन्त्र का विकास प्रारम्भ हुआ। राजा को मजबूर होकर जन प्रतिनिधियों की भागीदारी शासन में बढ़ानी पड़ी। धीरे-धीरे जन प्रतिनिधि अधिक शक्तिशाली हो गये, राजा अधिकारहीन हो गये। इंग्लैण्ड में राजा नाम के रह गये। फ्रान्स, जर्मनी एवं अन्य राज्यों में राजा को हटा दिया गया। इस प्रकार यूरोप के देशों में प्रजातन्त्र का विकास हुआ। सभी देशों में दो पार्टियाँ हैं जो राष्ट्रीय स्तर की होती हैं। दोनों पार्टियाँ शक्तिशाली होती हैं तथा क्रमशः शासन में सरकार बनाती रहती हैं। जनता जागरुक होकर प्रजातन्त्र पर विश्वास करती है।भारतीय नेता इंग्लैण्ड, फ्रान्स, जर्मनी, अमेरिका में शिक्षा ग्रहण करने गये। उन देशों में प्रजातान्त्रिक प्रणाली देखी। भारत की अंग्रेजी सरकार ने 1919 के अधिनियम के अनुसार धीरे-धीरे जनप्रतिनिधियों की विधानसभा में भागीदारी बढ़ाई। सन् 1935 के अधिनियम में जनता को अधिक अधिकार दिये गये। सन् 1919 एवं 1935 का अधिनियम इंग्लैण्ड में तैयार किया गया। सन् 1885 में कांग्रेस पार्टी का गठन हुआ। कांग्रेस पार्टी का गठन अंग्रेजी सरकार के अधीन हुआ। धीरे-धीरे कांग्रेस पार्टी पूरे देश में फैल गई। मुस्लिम लीग का गठन भी अंग्रेजी सरकार ने करवाया। मुस्लिम लीग छोटी पार्टी थी, राष्ट्रीय स्तर की पार्टी केवल कांग्रेस थी।15 अगस्त 1947 को देश स्वतंत्र हुआ। कांग्रेस पार्टी ही शासन की बागडोर संभाली। सबसे अच्छी शासन प्रणाली में प्रजातन्त्र को चुना गया। कांग्रेस पार्टी के अलावा क्षेत्रीय पार्टियाँ बनने लगीं। शोसलिस्ट पार्टी, जनसंघ पार्टी, राम राज्य पार्टी, कम्युनिष्ट पार्टी बनकर चुनाव में आगे आईं। क्षेत्रीय पार्टियों का प्रभाव राज्य तक सीमित रहा। राष्ट्रीय स्तर की केवल कांग्रेस पार्टी थी अतः केन्द्र में अकेली पार्टी का प्रभाव रहा। लोकसभा की तीन चैथाई सीटें कांग्रेस को मिलती रहीं। सन् 1947 से सन् 1963 तक जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री रहे, सन् 1964-65 तक कांग्रेस पार्टी के लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री रहे। सन् 1965 से 1976 तक इन्दिरा जी प्रधानमंत्री रहीं।सन् 1976 में सभी छोटी पार्टियों को मिलाकर जयप्रकाश ने जे.पी. पार्टी बनाई। जे.पी. पार्टी का प्रभाव पूरे भारत में रहा, कांग्रेस पार्टी चुनाव में हार गई। जे.पी. पार्टी शासन में आई परन्तु इस पार्टी के प्रथम प्रधानमंत्री पुराने कांग्रेसी नेता मुरार जी देशाई हुए। जयप्रकाश नारायण शारीरिक रूप से कमजोर हो गये। जे.पी. पार्टी विभाजित होने लगी। अतः कांग्रेस पार्टी पुनः सरकार में आ गई। इन्दिरा जी के बाद, राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। राजीव गांधी के बाद नरसिंहा राव प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस कमजोर हो गई। जनता पार्टी की सदस्य पार्टियाँ अलग-अलग हो गईं। जनसंघ पार्टी भारतीय जनता पार्टी के रूप में सामने आई।धीरे-धीरे कांग्रेस पार्टी कमजोर होती गई। कांग्रेस पार्टी को जिताने वाले एस.टी./एस.सी. की जनता बहुजन समाज पार्टी को वोट देने लगी। धीरे-धीरे भा.ज.पा. राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बन गई। कांग्रेस पार्टी का जनाधार घटता जा रहा है। पहले केवल कांग्रेस पार्टी थी, अब भा.ज.पा. राष्ट्रीय पार्टी के रूप में है। पूरे देश में कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं, परन्तु केन्द्रीय नेतृत्व कमजोर है। स्पष्ट रूप में कहा जा सकता है कि सोनिया गांधी को भारत की जनता ने स्वीकार नहीं किया। केवल स्वार्थी नेता सोनिया जी को आगे लाते रह गये तथा कांग्रेस पार्टी को कमजोर करते गये। राहुल गांधी माँ से प्रभावित है, जनता ने राहुल को अपना नेता नहीं माना। देश के हित में कांग्रेस पार्टी का अस्तित्व होना आवश्यक है जिससे दो राष्ट्रीय पार्टियाँ कांग्रेस एवं भाजपा देश का नेतृत्व कर सकें।कांग्रेस पार्टी किसी अच्छी छवि के नेता को अध्यक्ष बनाये। ऐसा नेता जो जनता पर प्रभाव डाल सके। जनता में अच्छी छवि के नेता ही प्रभाव डाल पायेंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारतीय जनता पार्टी को एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बना दिये हैं। प्रजातन्त्र के लिये कांग्रेस की आवश्यकता है। दो राष्ट्रीय पार्टी के बिना प्रजातन्त्र खतरे में रहता है। निरंकुश तन्त्र पनपने लगता है। दो राष्ट्रीय पार्टी होने से शासन में रहने वाली पार्टी पर अंकुश बना रहता है। कांग्रेस पार्टी के सदस्य पूरे देश में हैं और गाँव-गाँव में सक्रिय हैं। सही नेतृत्व की आवश्कता है।